एक जमाना था जब माना जाता था कि यदि समाज कोई घड़ी है तो पुरुष उस घड़ी की सुइयां और महिलाएं घड़ी के भीतर की बॉल-बेयरिंग। ऐसा नहीं है कि महिलाओं को महत्वपूर्ण नहीं माना जाता था लेकिन इतिहास में उनकी भूमिका हमेशा नेपथ्य में ही सुनिश्चित रही। लेकिन महिलाओं की मेहनत ने समय के साथ-साथ समाज को भी बदला। अब पुरुष यदि घड़ी रुपी समाज के मिनट या घंटे की सुई हैं तो महिलाएं सकेंड की सुई हैं। हर क्षण बढ़ती हुई, समय और समाज को अपने हिसाब से परिभाषित करती हुई। अब बेटियां बराबरी पर हैं बेटों के बराबर वह नई दुनिया में ताकत के नए रुपों को परिभाषित कर रहीं हैं। महिला दिवस के मौके पर हम बिहार की उन बेटियों की कहानियां आपको बता रहे हैं जो बेहद साधारण परिवेश से आईं। अपनी जिद और लगन से समाज में न सिर्फ अपने लिए बल्कि महिलाओं के एक सम्मान अर्जित किया।
चाहे वह पटना की कानून व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित करने वाली किम जिन्हें बचपन में एक टीवी सीरियल उड़ान की नायिका कल्याणी सिंह ने इतना प्रभावित किया कि वह आईपीएस की बनकर मानी। या फिर परिजनों के सवालों ‘शादी की करनी है तो पढ़ कर क्या करोगी’ को बीपीएससी के सवालों से हल करने वाली होमगार्ड कमांडेंट तृप्ति सिंह। बिहार ने पंजाब की बेटी हरप्रीत कौर की दिलेरी और ईमानदारी तो मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड के दौरान ही देख ली थी। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उनका आईपीएस बनने से पहले का जीवन किन-किन और किस-किस तरह के संघर्षों से होकर गुजरा है। महिला दिवस पर इन तेज तर्रार महिला अफसरों की कहानी इसलिए पढ़ी जानी चाहिए ताकि हम यह समझ सकें कि महिलाओं ने वक्त के साथ खुद को कैसे बदला, गढ़ा और जीत हासिल की…ताकि बिहार की और बेटियां आने वाले समय में नेपथ्य से निकल कर समय और समाज के मंच पर अपनी आभा बिखेर सकें।
स्कूली जीवन में ही ठान लिया था- आईपीएस अफसर बनूंगी
आईपीएस अफसर किम के बारे में जानने से पहले एक टीवी सीरियल की कहानी जानते हैं। सीरियल था ’उड़ान’। … यह एक साधारण परिवार की युवती ‘कल्याणी सिंह’ की कहानी है, जो हर स्तर पर लैंगिक भेदभाव से जूझती हुई आईपीएस अफसर बनती है। इसी ‘उड़ान’ ने किम को जिंदगी में नई उड़ान भरने की प्रेरणा दी। स्कूली जीवन में ही ठान लिया कि मैं भी आईपीएस अफसर बनूंगी। पर राह आसान नहीं थी। यूपीएसएस की परीक्षा में पहले ही प्रयास में वर्ष 2008 में आईपीएस के लिए चचनित हो गई। ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग पटना में सिटी एसपी के पद पर हुई। ‘लेडी सिंघम’ की छवि बन गई।
तृप्ति सिंह : पढ़ाई के लिए जिन्हें संघर्ष करना पड़ा
होमगार्ड कमांडेंट तृप्ति सिंह को बचपन से ही वर्दी अच्छी लगती थी। परिवार का एक इंटर कॉलज था पर परिजन लड़कियों की उच्च शिक्षा के खिलाफ थे। यूपी के जौनपुर की रहने वाली तृप्ति ने 12 वीं के बाद बीटेक किया और लक्ष्य बनाया भारतीय पुलिस सेवा। बीपीएससी के जरिए बिहार पुलिस सेवा के लिए चयनित हुई। होमगार्ड मुख्यालय में कमांडेंट के पद पर पोस्टेड हैं। तृप्ति के मुताबिक ‘सफल हो गई तो लोगों में चेंज आया। मैं खुद सशक्त फील करती हूं। हर दायित्व का निर्वहन कर रही हूं। भारतीय पुलिस सेवा में जाने के लिए मेरा प्रयास जारी है।…