कैसे फैलता है वायरस? Vanderbilt University Medical Center के इंफेक्शियस डिजीज स्पेशियलिस्ट डॉ. विलियम शैफनर कहते हैं, “ये वायरस उन छोटी-छोटी बूंदों के द्वारा फैलता है, जो संक्रमित व्यक्ति के छींकने और खांसने से निकलती हैं। ये वायरस हवा में तैर सकते हैं और लगभग 1 मीटर की दूरी तय कर सकते हैं। सामने किसी स्वस्थ व्यक्ति के होने पर ये वायरस उसके नाक के रास्ते म्यूकस मेंब्रेन में प्रवेश कर जाते हैं और फिर वहां से गले में पहुंचकर रिसेप्टर सेल्स के साथ जाकर जुड़ जाते हैं। यहीं से सारी कहानी शुरू होती है।
कोरोना वायरस के बाहरी आवरण पर एक खास प्रोटीन होता है, जो सेल मेंब्रेन के साथ जुड़ने में इसकी मदद करता है। इसके बाद जिस तरह से 2 कंप्यूटर आपस में कनेक्ट होने पर एक दूसरे से कोडिंग बदलते हैं, उसी तरह ये वायरस जेनेटिक मैटीरियल को इंसानी सेल्स में भेजने लगता है। ये जेनेटिक मैटीरियल एक्टिवेट उस सेल के मेटाबॉलिज्म पर कब्जा कर लेता है और उसके अपने फंक्शन को बंद करके, उसी की मदद से अपनी संख्या को शरीर में बढ़ाने लगता है।
श्वसनतंत्र को कैसे प्रभावित करता है? डॉ. विलियम शैफनर आगे कहते हैं, “जैसे-जैसे ये वायरस अपनी कॉपीज बनाता जाता है और संख्या बढ़ाता जाता है, वैसे-वैसे ये वायरस अपने आसपास के सेल्स को डैमेज करने लगते हैं। इसलिए आमतौर पर सबसे पहले लक्षण गले के पास देखे गए हैं, जैसे- बार-बार खांसी आना या सांस लेने में परेशानी। इसके बाद ये वायरस श्वसन नली में प्रवेश कर जाता है। जब ये वायरस यहां से बढ़ता हुआ फेफड़ों में पहुंचता है, तो फेफड़ों के म्यूकस मेंब्रेन में सूजन आ जाती है। इस स्टेज में ये वायरस रोगी के लंग सैक्स (छोटे-छोटे छिद्र, जिनसे फेफड़ों में ऑक्सीजन छनकर जाती है) को डैमेज करने लगता है, जिससे रोगी को सांस लेने की तकलीफ शुरू हो जाती है और पूरे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इसके साथ ही शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड के निकलने की प्रक्रिया भी बाधित हो जाती है।” इस स्टेज में व्यक्ति को निमोनिया हो सकता है। इस स्टेज में कई मरीजों को वेंटिलेटर में रखने की जरूरत पड़ सकती है। कुछ गंभीर स्थितियों में या बूढ़े लोगों में इस स्टेज में बॉडी का श्वसनतंत्र पूरी तरह फेल हो सकता है और व्यक्ति की मौत हो सकती है।
क्या ये वायरस सिर्फ फेफड़ों को प्रभावित करता है? Dr. Compton-Phillips कहते हैं कि ये वायरस नाक के म्यूकस मेंब्रेन से लेकर पेट तक फैल सकता है। कई मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि फेफड़ों में वायरस की संख्या शून्य है, यानी बिल्कुल नहीं है, जबकि ये गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम में पहुंच गए हैं। ऐसे मामलों में मरीज को डायरिया या अपच की समस्या हो सकती है। इसके साथ ही ये वायरस खून में भी पहुंच सकता है, जिसके कारण बोन मैरो और दूसरे अंगों में भी सूजन आ सकती है। डॉ. विलियम शैफनर के अनुसार ये वायरस हार्ट, किडनी, लिवर जैसे वाइटल अंगों में पहुंचकर सीधे उन्हें डैमेज कर सकते हैं। अभी तक विशेषज्ञों को इस बात का पता नहीं चला कि ये वायरस मस्तिष्क को प्रभावित करता है या नहीं। मगर कुछ वैज्ञानिकों ने कुछ मरीजों के मस्तिष्क में भी इस वायरस के संकेत पाए हैं।